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इलेक्टोरल बॉण्ड्स बना मुख्य चुनावी मुद्दा

ऐसे वक़्त में जब लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिये मतदान प्रारम्भ होने में कुछ ही घंटे रह गये हैं और इस चरण के अंतर्गत जिन सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं, वहां प्रचार भी थम गया है, इलेक्टोरल बॉण्ड्स प्रमुख चुनावी मुद्दा बनकर उभरता नजऱ आ रहा है। यह भारतीय जनता पार्टी के लिये निश्चित ही चिंता की बात होगी क्योंकि इस पर विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस द्वारा जैसा हमला उस पर हो रहा है वह इसलिये अधिक चिंतनीय है क्योंकि ये आक्रमण सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हो रहे हैं। उन्हें इस भ्रष्टाचार का सूत्रधार बतलाया जा रहा है।

चूंकि भाजपा का सारा प्रचार नरेंद्र मोदी पर ही टिका है, अगर यह मुद्दा मतदाताओं के जेहन में बैठ गया तो भाजपा के अपने दम पर 370 सीटें लाने के इरादे और सहयोगी दलों के साथ के 400 पार होने के नारे की धज्जियां उड़ जायेंगी। शायद यही कारण है कि मोदी बार-बार इस योजना (इलेक्टोरल बॉण्ड्स) को सही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं विपक्ष जान गया है कि उसके हाथ एक ऐसा अस्त्र लग गया है जिसके बल पर भाजपा को इस चुनाव में धूल चटाई जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि इस साल फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉण्ड्स योजना को असंवैधानिक घोषित करने के साथ ही भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बैकफुट पर आती दिख रही है। पिछले 10 वर्षों से कांग्रेस को परिवारवाद के अलावा मोदी व भाजपा जिस मामले को लेकर सर्वाधिक कोसती थी, वह गांधी कुटुम्ब तथा उसका कथित भ्रष्टाचार ही रहा है। बाज़ी उस वक़्त पलट गई जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र की भाजपा सरकार की इस योजना को ही भ्रष्टाचार का तरीका ठहरा कर उसे बेनकाब कर दिया।

यही कारण है कि देश के कई अख़बारों और चैनलों को नरेंद्र मोदी इन दिनों साक्षात्कार दे रहे हैं जिसका प्रमुख मुद्दा इलेक्टोरल बॉण्ड्स ही है। ऐसा नहीं कि वे केवल इसी पर बात कर रहे हों पर उनके हाल के दिये ज्यादातर इंटरव्यू में जिस प्रमुखता से वे इस पर बातें कर रहे हैं उससे साफ़ है कि उन्हें इस मामले को लेकर कुछ ज्यादा ही सफाई देनी पड़ रही है। जैसा कि कहा जाता है कि उनके ज्यादातर साक्षात्कार उन्हीं की प्रचार टीम द्वारा तैयार होते हैं, स्वाभाविकत: उनमें यह मुद्दा बहुत ही ख़ास स्थान पा रहा है। ज़्यादातर लोग यह मानते हैं कि साक्षात्कारों की प्रश्नावली मोदी के कार्यालय या उनकी नजऱों से गुजरती ही है। जिनमें उनकी सहमति हो वे ही सवाल इसमें रखे जाते हैं।

अब तमाम साक्षात्कारों में इलेक्टोरल बॉण्ड्स के बारे में श्री मोदी जो कह रहे हैं उनमें यह बात ज़रूर होती है कि ‘जो लोग आज इसे लेकर उत्साहित हैं वे आगे जकर पछताएंगे।’ वे यह भी कह रहे हैं कि ‘पहली बार चुनावी चंदे की आवक-जावक का पता चल रहा है वरना पूर्ववर्ती सरकारों के समय तो पता भी नहीं चलता था कि किसी भी पार्टी को कहां से चंदा मिल रहा है।’ हालांकि वे यह नहीं बता रहे हैं; और कोई पूरक प्रश्न पूछ भी नहीं रहा है कि अगर वे पारदर्शिता के इतने ही हिमायती हैं तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सुप्रीम कोर्ट को इस योजना के बाबत सारी जानकारी देने से क्यों आनाकानी कर रहा था। ख़ासकर, सरकार के इशारे पर किसलिये कारोबारियों के संगठन अदालत के सामने इस गुहार के साथ पहुंचे थे कि चंदा देने वालों के नाम उजागर न किये जायें।

प्रधानमंत्री मोदी तो चुनावी बॉण्ड्स के बारे में जो कह रहे हैं, वह अपनी जगह है परन्तु खबरों के मुताबिक वित्त मंत्रालय अब इस योजना को संशोधित स्वरूप में लाने की योजना बना रहा है- बावजूद इसके कि देश आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा है और मोदी सरकार केवल कार्यवाहक है। जिस सरकार व प्रधानमंत्री को शीर्ष कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित कर दी गई योजना पर शर्मिंदा होना चाहिये था, वे न केवल इसका शिद्दत से बचाव कर रहे हैं बल्कि इसका दूसरा संस्करण लाने की भी तैयारी कर रहे हैं, वह भी चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद। इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर मोदी की हठधर्मिता इस कदर है कि वे कोर्ट की अवमानना की परवाह किये बिना ही इसके पक्ष में बोल रहे हैं, मीडिया में अपना पक्ष रख रहे हैं और उसे फिर से पेश करने की तैयारी भी कर रहे हैं।

दूसरी तरफ विपक्ष ने भी जान लिया है कि यह मोदी की कमज़ोर नब्ज़ है जो उसके हाथ लग गई है। सो वह पूरी ताक़त से उसे दबा रही है। दरअसल इसके कई आयाम एक साथ उजागर हो गये। इसमें बताया गया कि भाजपा के लिये चंदा बटोरने के लिये केन्द्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग केंद्र सरकार द्वारा किया गया। जैसे-जैसे इस घोटाले की परतें खुलती गयीं यह साफ होता चला गया कि देश के समक्ष आज जो महंगाई, बेरोजगारी आदि की समस्याएं हैं उन सभी की जड़ें भी इस घोटाले से जुड़ी हुई हैं। इसी प्रकार कोरोना काल में लोगों को लगाये गये टीके का सम्बन्ध भी इसके साथ जोड़ा जा रहा है।

इसके अलावा भी दर्जनों ऐसे मामले सामने आये हैं जो बतलाते हैं कि इलेक्टोरल बॉण्ड्स की एवज में भाजपा सरकार ने कारोबारियों को किस तरह उपकृत किया है या फिर उन्हे डरा-धमकाकर उनसे उगाही की है। कई ऐसी कम्पनियों के नाम भी सामने आये हैं जिन्होंने अपने लाभ से कई गुना ज्यादा चंदा भाजपा को दिया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इसे हफ़्ता वसूली जैसा बताया है, जिससे साफ़ है कि इन चुनावों में इलेक्टोरल बॉण्ड्स अब बड़ा मुद्दा बन गये हैं।

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